Thursday, April 22, 2021

घर में रहिए और सुरक्षित रहिए

 *गुज़र रही है ज़िन्दगी*

  *ऐसे मुकाम से*

*अपने भी दूर हो जाते हैं,*

  *ज़रा से ज़ुकाम से !*

*तमाम क़ायनात में "एक क़ातिल बीमारी" की हवा हो गई,*

 *वक़्त ने कैसा सितम ढा़या कि "दूरियाँ" ही  ''दवा'' हो ग ई* 

*आज सलामत रहे*

*तो कल की सहर देखेंगे*

*आज पहरे में रहे*

*तो कल का पहर देखेंगें ।*

*सासों के चलने के लिए*

*कदमों का रुकना ज़रूरी है,*

*घरों मेँ बंद रहना दोस्तों*

*हालात की मजबूरी है ।*

*अब भी न संभले*

*तो बहुत पछताएंगे,*

*सूखे पत्तों की तरह*

*हालात की आंधी में बिखर जाएंगे ।*

*यह जंग मेरी या तेरी नहीं*

*हम सब की है,*

*इस की जीत या हार भी*

*हम सब की है ।*

*अपने लिए नहीं*

*अपनों के लिए जीना है,*

*यह जुदाई का ज़हर दोस्तों*

*घूंट घूंट पीना है ।* 

*आज महफूज़ रहे*

*तो कल मिल के खिलखिलाएँगे,*

*गले भी मिलेंगे और*

*हाथ भी मिलाएंगे ।* !!*

  संजीव रंजन 

           (राजा)

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