Friday, October 1, 2021

पति-पत्नी, एक बनाया गया अनोखा रिश्ता

 

*COUPLE'S DAY*

This is a *Beautiful Gift of God*


          *पति-पत्नी*


एक बनाया गया *रिश्ता*...


पहले कभी एक दूसरे को *देखा* भी नहीं था...

अब सारी *जिंदगी* एक दूसरे के साथ |                       

पहले *अपरिचित*, 

फिर धीरे धीरे होता *परिचय* |

धीरे-धीरे होने वाला *हृदय स्पर्श*,

फिर *नोकझोंक*....

*झगड़े*...

बोलचाल *बंद* |

कभी *जिद*, 

कभी *अहम का भाव*..........


फिर धीरे धीरे बनती जाती *प्रेम पुष्पों* की *माला*

फिर *एकजीवता*, *दो शरीर एक आत्मा* |


वैवाहिक जीवन को *परिपक्व* होने में *समय* लगता है |

धीरे धीरे जीवन में *स्वाद और मिठास* आती है...

ठीक वैसे ही जैसे *अचार* जैसे जैसे *पुराना* होता जाता है, उसका *स्वाद* बढ़ता जाता है.......


*पति पत्नी* एक दूसरे को अच्छी प्रकार *जानने समझने* लगते हैं,

*वृक्ष* बढ़ता जाता है,

*बेलें फूटती* जातीं हैं,

*फूल आते हैं, फल* आते हैं,

रिश्ता और *मजबूत* होता जाता है, धीरे-धीरे बिना एक दूसरे के *अच्छा* ही नहीं लगता |


*उम्र* बढ़ती  जाती है, दोनों एक दूसरे पर अधिक *आश्रित* होते जाते हैं, एक दूसरे के बगैर *खालीपन* महसूस होने लगता है |


फिर धीरे-धीरे मन में एक *भय का निर्माण* होने लगता है,


              "ये चली गईं तो मैं कैसे जिऊँगा"........??

               "ये चले गए तो मैं कैसे जीऊँगी"..........??


अपने मन में *घुमड़ते इन सवालों* के बीच जैसे, खुद का *स्वतंत्र अस्तित्व* दोनों भूल जाते हैं |


कैसा अनोखा *रिश्ता*...

कौन कहाँ का और एक बनाया गया रिश्ता |


               *"पति-पत्नी"*


       *"Happy Couples Day"*

     सभी शादीशुदा जोड़ो को समर्पित


*विवाह एक भरोसा है,*

                            *समर्पण है |*

*तारीफ उस स्त्री की*

             *जिसने खुद का घर* *छोड़ दिया*

      *और*

*धन्य है वो पुरुष,*

            *जिसने अंजान स्त्री को*

              *घर सौंप दिया ..........*

 *Dedicated to all Couples*

With love

Sanjiv Ranjan

Thursday, April 22, 2021

घर में रहिए और सुरक्षित रहिए

 *गुज़र रही है ज़िन्दगी*

  *ऐसे मुकाम से*

*अपने भी दूर हो जाते हैं,*

  *ज़रा से ज़ुकाम से !*

*तमाम क़ायनात में "एक क़ातिल बीमारी" की हवा हो गई,*

 *वक़्त ने कैसा सितम ढा़या कि "दूरियाँ" ही  ''दवा'' हो ग ई* 

*आज सलामत रहे*

*तो कल की सहर देखेंगे*

*आज पहरे में रहे*

*तो कल का पहर देखेंगें ।*

*सासों के चलने के लिए*

*कदमों का रुकना ज़रूरी है,*

*घरों मेँ बंद रहना दोस्तों*

*हालात की मजबूरी है ।*

*अब भी न संभले*

*तो बहुत पछताएंगे,*

*सूखे पत्तों की तरह*

*हालात की आंधी में बिखर जाएंगे ।*

*यह जंग मेरी या तेरी नहीं*

*हम सब की है,*

*इस की जीत या हार भी*

*हम सब की है ।*

*अपने लिए नहीं*

*अपनों के लिए जीना है,*

*यह जुदाई का ज़हर दोस्तों*

*घूंट घूंट पीना है ।* 

*आज महफूज़ रहे*

*तो कल मिल के खिलखिलाएँगे,*

*गले भी मिलेंगे और*

*हाथ भी मिलाएंगे ।* !!*

  संजीव रंजन 

           (राजा)